Saturday 21 April 2012

सुविचार - suvichaar












1. राष्ट्रवादिता ( राष्ट्रवाद क्या है और राष्ट्रधर्म सर्वप्रथम क्यों जरुर पढ़ें और राष्ट्रवादी बनें )

जो राष्ट्र को अपने जीवन में सदा सबसे ऊँचे स्थान पर रखता हो , वह राष्टवादी है !

धर्म में सबसे पहले राष्ट्रधर्म , उसके बाद अपना वैयक्तिक धर्म - हिन्दू , मुस्लिम , सिक्ख , इसाई आदि धर्म , देवों में प्रथम देवता राष्ट्रदेव को जो मानता हो वह राष्ट्रवादी है !

वैयक्तिक, पारिवारिक व आर्थिक हितों में प्रथम राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानना , प्रेम में सबसे प्रथम राष्ट्रप्रेम , जीवन में एवं जगत में भी उससे ही प्रेम करना , जो देश से प्रेम करे !

जो देश से प्रेम नहीं करे , उससे प्रेम नहीं करना ! पूजा-भक्ति में प्रथम पूजा-भक्ति राष्ट्र की, उसके बाद ईश-भक्ति, मातृ-भक्ति व गुरुभक्ति आदि को मानना !

वन्दना में प्रथम राष्ट्रवन्दना, ध्यान में प्रथम देश का ध्यान , चिन्तन में प्रथम चिन्तन व राष्ट्र की चिन्ता, काम में प्रथम देश का काम , अभिमान में जो प्रथम स्वदेश का स्वाभिमान करे , वह राष्ट्रवादी है , रिश्तों में प्रथम रिश्ता-नाता नहीं रखता !

स्वच्छता व स्वस्थता में भी प्रथम देश की स्वच्छता व स्वस्थता , समृद्धि में प्रथम देश की समृद्धि , विकास में भी प्रथम राष्ट्र का विकास का प्रयास जो करता है, वह राष्ट्रवादी है !

शिक्षा में जो स्वदेशी शिक्षा को सबसे श्रेष्ठ मानता है , वह राष्ट्रवादी है ! भाषाओं में जिसके जीवन, आचरण व व्यवहार में प्रथम राष्ट्रभाषा है , वह राष्ट्रवादी है !

जो स्वदेशी शिक्षा , स्वदेशी के संस्कार , स्वदेश की संस्कृति-योग,धर्म , दर्शन व अध्यात्म से प्यार करे , वह राष्ट्रवादी है ! जो स्वस्थ , स्वच्छ , समृद्ध व संस्कारवान भारत बनाने के लिए एवं स्वदेस्गु से स्वावलम्बी राष्ट्र बनाने के लिए , जो नियंत्रित जनसँख्या के नियम से भूख , गरीबी , बेरोजगारी , से मुक्त व सौ प्रतिशत अनिवार्य मतदान के विधान से देश की भ्रष्ट राजनेतिक व्यवस्था के समाधान के लिए प्रतिबद्ध है , व राष्ट्रवादी है !

जो स्वदेशी चिकित्सा पद्धतियाँ-योग, आयुर्वेद , यूनानी व सिद्ध आदि के पूर्ण विकास व इन पर अनुसंधान के लिए संकल्पित है , वह राष्ट्रवादी है ! जो स्वदेशी ज्ञान अर्थात वेद , दर्शन व उपनिषद आदि से प्राप्त वैदिक स्वदेशी ज्ञान स्वदेशी खान-पान , स्वदेशी वेशभूषा , स्वदेशी कृषि व स्वदेशी ऋषि-संस्कृति से प्यार करता है , वह राष्ट्रवादी है !

जो स्वदेशी खेल , स्वदेशी कला-संस्कृति एवं स्वदेशी की प्राचीन भाषा संस्कृत एवं समस्त भारतीय भाषाओं एवं राष्ट्रभाषा से प्यार करता है व राष्ट्रभाषा को सर्वोच्च मानता है , वह राष्ट्रवादी है !

मनोरंजन में भी जो मूल्यों , आदर्शों व परम्पराओं पर आधारित भारतीय मनोरंजन में विशवास करता है , वह राष्ट्रवादी है !

राष्ट्रावाद , राष्ट्रधर्म या राजनीती से हमारा अभिप्राय राष्ट्र की उन तमाम व्यवस्थाओं , नियम-कानूनों , आदर्श-मूल्यों , व परम्पराओं से है , जिन पर चलकर देश में सुख , समृद्धि एवं खुशहाली आती है तथा देश निरन्तर विकास की दिशा में आगे बढ़ता है !

हमारे राष्ट्रवाद या राष्ट्रधर्म के आदर्श हैं :- मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम , योगेश्वर श्री कृष्ण , चन्द्रगुप्त, विक्रमादित्य , सम्राट अशोक , तिलक , गोखले , गाँधी , नेताजी , सुभाष , छत्रपति शिवाजी , महाराणाप्रताप , लोह पुरुष सरदार पटेल व लाल बहादुर शास्त्री आदि !

जो शून्य तकनीकी से बनी विदेशी वस्तुएं अपने दैनिक जीवन में उपयोग नहीं करता , वह राष्ट्रवादी है 





















वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं।

वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें जीवन, न रवानी है!
जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है!

उस दिन लोगों ने सही-सही, खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में, मॉंगी उनसे कुरबानी थी।

बोले, "स्वतंत्रता की खातिर, बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा।

आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के, फूलों से गूँथी जाएगी।

आजादी का संग्राम कहीं, पैसे पर खेला जाता है?
यह शीश कटाने का सौदा, नंगे सर झेला जाता है"

यूँ कहते-कहते वक्ता की, आंखों में खून उतर आया!
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा, दमकी उनकी रक्तिम काया!

आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले, "रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की, आज़ादी तुम मुझसे लेना।"

हो गई सभा में उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के, कोसों तक छाए जाते थे।

“हम देंगे-देंगे खून” , शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े, तैयार दिखाई देते थे।

बोले सुभाष, "इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं, आकर हस्ताक्षर करता है?

इसको भरनेवाले जन को, सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन, माता को अर्पण करना है।

पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का, कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!

वह आगे आए जिसके तन में, खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को, हिंदुस्तानी कहता हो!

वह आगे आए, जो इस पर, खूनी हस्ताक्षर करता हो!
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए, जो इसको हँसकर लेता हो!"

सारी जनता हुंकार उठी-, हम आते हैं, हम आते हैं!
माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढाते हैं!

साहस से बढ़े युबक उस दिन, देखा, बढ़ते ही आते थे!
चाकू-छुरी कटारियों से, वे अपना रक्त गिराते थे!

फिर उस रक्त की स्याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे!
आज़ादी के परवाने पर, हस्ताक्षर करते जाते थे!

उस दिन तारों ने देखा था, हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने, ख़ूँ से अपना इतिहास नया।

जय हिंद .... वन्देमातरम ...











विकास शब्द की सच्चाई
आजकल यहाँ हर कोई कहता फिरता है की हमें विकास चाहिए ,सरकार कह रही है की हम आपको विकास देंगे ,महिलाये कह रही हैं की हमें विकास चाहिए , गरीब कह रहे की हमें विकास चाहिए ,पूरा भारत देश कर रहा है की हम तो हर हालत में विकास लेकर ही रहेंगे .भाई रुको जरा समज तो लो की विकास है क्या बला विकास की परिभाषा
अमेरिका और वर्ल्ड बैंक ने मिलकर भारत जैसे गरीब देशो का शोषण करने के लिए बनायीं है .सरकार की चाल है की इस विकास सबद के मायाजाल में फंसा कर गाँव में रहने वाले गरीबो को शहर की तरफ लाया जाए और वहां बड़ी बड़ी कंपनियों में मजद्रूरी कराये जाए .
भारत सरकार नकारात्मक विकास में लगी हुई जो अगली पीढ़ियों को बर्बाद कर देगा .असल आज का विकास पदार्थ अवस्था पर आधरित है और प्राचीन भरत का विकास प्रानावस्था पर आधारित था .फर्क देखिये प्रानावस्था पर आधारित विकास में हम सोने की चिड़िया थे और पदार्थ अवस्था के विकास के दोर में हमारे 33 करोड़ देशवासियों को २ वक्त की रोटी नहीं मिलती है .कही जगह मिले तो रुक जाइए और बेठ कर सोचिये कही हम बर्बाद तो नहीं हो रहे हैं .ऐसी प्रगति किस काम की जो हमरी प्रकति को ही नुक्सान पहुंचा रही है .जब प्रकति ही नहीं रहेगी तो हम और आप कहाँ से जिन्दा बचेंगे .हमें विकास चाहिए भले ही बर्बाद हो जाए लानत है इस सोच पर





















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